"ताजुर्बे कुछ ज़्यादा है या बंदिशे तमाम है, इन आंखों से देखोगे तो वह आज भी आम हैं....। जिस शाख़ की वजह से कभी रोई हो जड़ें देख लेना सफ़र में वह आज भी नाकाम हैं.....।" कुछ बातो को अलंकार की ज़रूरत नहीं, वो खुद में ही श्रृंगार होती है और उन्हीं बातों को स्पष्ट और सरल लेहज़े में कहना कलाकार की पहचान होती है। इन्हीं खूबियों के साथ शिवानी जी ने अपने विचारों को ख़्वाब और हकीक़त कि ऊन से कविताओं में बुना है। इन कविताओं में कुछ गहरे सवाल और बहुत से अवलोकनो कि छाप दिखाई पड़ती है। कुछ ख़्वाब कुछ हकीक़त अपने आप में कभी कटाक्ष है कभी उल्लास तो कभी दुख़ भरे लम्ह़ो का बयान मगर इतना तो तय है कि इस सफ़र में यह आपकी हमसफ़र ज़रूर बन जाएगी।
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